प्रेम प्रश्नोत्तर की शृंखला में प्रश्न है कि प्रेम में कौन-कौन सी शक्तियाँ होती हैं?
जब हम प्रेम का जीवंत उदाहरण बन गए प्रेमी व्यक्तियों के बारे में जानते हैं तो प्रायः हम आश्चर्य और रोमांच से भर उठते हैं कि प्रेम का ऐसा अद्भुत अनुभव भी प्राप्त किया जा सकता है! कि प्रेम को इतनी गहराई से भी जिया और निभाया जा सकता है! हमारी तर्क शक्ति तो यही कहती है कि यदि प्रेम इतना शक्तिशाली और समर्थ नहीं होता तो वह किसी प्रेमी के जीवन को इतना ऊँचा कैसे उठा पाता कि उसका जीवन त्याग और आकर्षण का सदैव के लिए जाग्रत उदाहरण बन पाता? प्रेम मानवीय गुण के रूप में प्रकट होने वाली शक्तियों का ही एक पुंज है जिसके प्रभाव विलक्षण होते हैं। आइये जानते हैं कि वे शक्तियाँ क्या हैं और उनके प्रभाव कैसे होते हैं?
प्रेम की सभी शक्तियों के मूलाधार में होती है ‘आकर्षण शक्ति’। किसी से भावपूर्ण जुड़ाव का अनुभव इसी आकर्षण शक्ति के प्रभाव में होता है। प्रेम के किसी भी स्तर पर पहुँचा हुआ व्यक्ति प्रेम की आकर्षण शक्ति का तो अनुभव करता ही है। प्रेम के प्रारंभ में यह आकर्षण प्रेमी को प्रियतम की ओर ले जाता है और प्रेम के परिपक्व हो जाने पर यही आकर्षण प्रेमी को प्रियतम से भावनात्मक रूप से दूर नहीं होने देता। प्रेम की इस आकर्षण शक्ति का अनुभव देह के स्तर पर भी होता है और चेतना के विभिन्न स्तरों पर भी। प्रेममय जीवन के प्रसंग-3 में हमने प्रेम के तीन तलों और अवस्थाओं को जाना था। आकर्षण का सीधा सम्बन्ध भी उन्हीं तलों और अवस्थाओं से है। जब आकर्षण का अनुभव देह के स्तर पर होता है तो वह स्थूल प्रेम कहलाता है, प्रेम की इस प्रारम्भिक अवस्था को तो हम सभी सामान्य जीवन में अनुभव करते ही हैं, लेकिन जब आकर्षण का यही अनुभव सूक्ष्म हो-होकर चेतना के गहरे स्तर तक पहुँच जाता है तो वह क्रमशः सूक्ष्म प्रेम और चैतन्य प्रेम की अवस्था तक ले जाता है इन अवस्थाओं में रहने वाला आकर्षण स्थाई होता है।
आकर्षण शक्ति के बाद प्रेम की अगली शक्ति है ‘भेदभाव और दूरियाँ मिटा देने की शक्ति’। प्रेम का गहराई से अनुभव होते ही दो या अन्य प्राणियों के बीच ऐसा सम्बन्ध जुड़ जाता है जिसमें भेदभाव या दूरियों के लिए स्थान ही नहीं बचता। प्रेमी की तो यह घोषणा है कि जब तक भेदभाव और दूरियाँ रहती हैं तब तक प्रेम का वास्तविक अनुभव संभव ही नहीं और प्रेम का यथार्थ अनुभव होते ही सभी तरह के भेदभाव और दूरियाँ अपने आप मिट जाते हैं।
प्रेम की स्वतः सिद्ध शक्ति है ‘त्याग और बलिदान शक्ति’। इतिहास ने प्रेम की इस शक्ति के अनगिनत उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। एक माँ का अपनी संतान से प्रेम देखिए, एक सैनिक का अपने कर्तव्य और मातृभूमि से प्रेम देखिए, एक कलाकार का उसकी कला से प्रेम देखिए, एक साधक का उसकी साधना से प्रेम देखिए, एक प्रेमी का उसके प्रियतम से प्रेम देखिए तो आपको उनके प्रेम में समाए हुए अपने सुखों के त्याग और बलिदानपूर्ण जीवन की झलक मिल जायेगी।
प्रेम में मन के दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति होती है, प्रेम मन की दुर्बलता, द्वेष और भय को मिटा देता है इस विषय पर हमने प्रेममय जीवन के प्रसंग-2 में विस्तार से चर्चा की थी जहाँ हमने ‘प्रेम सारावली’ के सूत्रों और दोहों के माध्यम से इस विषय को समझा था। भावपूर्ण सम्बन्ध जब निर्दोष हो तब जो भी अनुभव होते हैं वे सभी प्रेम को पुष्ट करते हैं, और प्रेम का अनुभव होते ही हमारी सोच का स्तर ऊपर उठने लगता है तब हमारा मन ही स्वच्छ होकर हमारा सहयोगी हो जाता है और हम अपने भीतर बल और निर्भीकता का तो अनुभव करते ही हैं साथ ही साथ शांति और आनंद का भी अनुभव करने लगते हैं।
प्रेम परिवार और समाज को एकजुट कर देता है और उसे सम्पन्न और समृद्ध भी बना देता है। किसी परिवार और समाज के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता यही तो है कि वह एकजुट रहे, उसमें भाईचारा और एकता रहे तभी तो वह सशक्त और विकसित हो सकेगा। प्रेम परिवार और समाज की इसी बुनियाद को थामता है। वही परिवार और समाज समृद्ध और सशक्त होता है जिसमें सदस्यों के बीच प्रेम होता है। किसी समाज में मनाए जाने वाले त्यौहार प्रेम, सद्भाव, मान्यता और सम्मान के ही जाग्रत प्रतीक हैं। हमारे पर्व हमें जोड़े रखते हैं वे हमें एक दूसरे से भी जोड़ते हैं और हमारी परम्पराओं के माध्यम से हमारी संस्कृति से भी।
प्रेम की संभवतः सबसे विलक्षण शक्ति है कि वह व्यक्ति को सहजता से चेतना के ऊँचे अनुभव करा देता है। प्रेम की सूक्ष्म अवस्था में पहुँच कर व्यक्ति अभूतपूर्व आनंद का बार-बार अनुभव करने लगता है, और प्रेम की चैतन्य अवस्था में पहुँचा हुआ व्यक्ति असीम चेतना शक्ति को अपने भीतर ही प्रत्यक्ष कर लेता है। प्रेमी की यह अवस्था कोई भ्रम या कल्पना की अवस्था नहीं होती बल्कि इस अवस्था में पहुँचे हुए व्यक्ति के व्यवहार तथा प्रभाव से बार-बार प्रमाणित होती है। ऐसे व्यक्ति के प्रेममय जीवन का सार्थक प्रभाव अन्य व्यक्तियों के ऊपर भी पड़ता है। यह प्रेम की शक्ति का ही तो प्रभाव है कि प्रेम के अनुभव में ठहरते ही व्यक्ति को तृप्ति और पूर्णता का बार-बार अनुभव होता है।
अपने अल्पज्ञान की सीमाओं को समझते हुए मेरी प्रेममय चेतना से यह प्रार्थना है कि सभी जिज्ञासुओं को प्रेम के सम्बन्ध में उठने वाले प्रश्नों का स्पष्टता से उत्तर मिले तथा उन्हें प्रेम का ऐसा अनुभव प्राप्त हो कि उनका जीवन प्रेममय हो जाए I
सभी को अल्पज्ञानी का प्रणाम!
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